Vijayadashmi
विजयादशमी
विजयादशमी दिन के बारे में कई कहानियां प्रसिद्ध है, उनमे से एक है महिषासुर वध की कथा।
महिषासुर रंभासुर का पुत्र था, जो बहुत ही शक्तिशाली राक्षस
था उसने अपने कठोर यज्ञ से ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके उनसे अमरता का वरदान मांगता है, पर ब्रह्मा जी उससे कहते हैं कि इस वरदान के अलावा तुम कुछ और वरदान मांग लो क्योंकि जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है, मैं तुम्हे अमरता का वरदान नही दे सकता, तब महिषासुर ब्रह्मा जी से कहता है कि फिर मुझे ऐसा वर दीजिये की मैं किसी देवता, मानव या दानव के द्वारा न मारा जाऊ, मेरा वध एक स्त्री के हाथों हो, ब्रह्मा जी उसे ये वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए, महिषासुर को इस बात का घमंड था कि स्त्री अत्यंत कमजोर होती है, अतः स्त्री से उसे किसी प्रकार का कोई भय नही है अतः अब कोई भी उसका वध नही कर सकता।
ब्रह्मा जी से ये वरदान प्राप्त कर वह उद्यमी महिषासुर पूरे संसार में अत्यंत उत्पात मचाने लगता है, मृत्यु लोक में आक्रमण कर उसपे विजय प्राप्त करने के उपरांत वह इंद्रलोक की तरफ बढ़ा तथा वहाँ भी आक्रमण कर विजयी हो गया।
सभी देवतागण भी परेशान हो गए, तब शिवजी, ब्रह्मा जी और विष्णु जी की शक्तियों से एक अत्यंत ही सुंदर स्त्री प्रकट होती है जिन्हें दुर्गा का नाम दिया गया, उनके 18 हाथों में देवताओं द्वारा दिये अस्त्र- शस्त्र सुशोभित हो रहे थे।
ऐसा कहा जाता है कि दुर्गा माँ और महिषासुर के बीच 10 दिनों तक ये युद्ध चला था। महिषासुर तरह तरह के जानवर का रूप लेकर माता पर आक्रमण करता और हार जाता था, अंततः 10वें दिन माता महिषासुर का गला काट कर युद्ध को समाप्त करती है, और इस दुष्ट राक्षस से संसार को मुक्त कराती है।
9 दिनों के इस काल को नवरात्रि कहते है और दसवें दिन माता ने महिषासुर पर विजय प्राप्त की, अतः विजय प्राप्ति के इस दिन को विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है।
विजयादशमी दिन के बारे में कई कहानियां प्रसिद्ध है, उनमे से एक है महिषासुर वध की कथा।
महिषासुर रंभासुर का पुत्र था, जो बहुत ही शक्तिशाली राक्षस
था उसने अपने कठोर यज्ञ से ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके उनसे अमरता का वरदान मांगता है, पर ब्रह्मा जी उससे कहते हैं कि इस वरदान के अलावा तुम कुछ और वरदान मांग लो क्योंकि जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है, मैं तुम्हे अमरता का वरदान नही दे सकता, तब महिषासुर ब्रह्मा जी से कहता है कि फिर मुझे ऐसा वर दीजिये की मैं किसी देवता, मानव या दानव के द्वारा न मारा जाऊ, मेरा वध एक स्त्री के हाथों हो, ब्रह्मा जी उसे ये वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए, महिषासुर को इस बात का घमंड था कि स्त्री अत्यंत कमजोर होती है, अतः स्त्री से उसे किसी प्रकार का कोई भय नही है अतः अब कोई भी उसका वध नही कर सकता।
ब्रह्मा जी से ये वरदान प्राप्त कर वह उद्यमी महिषासुर पूरे संसार में अत्यंत उत्पात मचाने लगता है, मृत्यु लोक में आक्रमण कर उसपे विजय प्राप्त करने के उपरांत वह इंद्रलोक की तरफ बढ़ा तथा वहाँ भी आक्रमण कर विजयी हो गया।
सभी देवतागण भी परेशान हो गए, तब शिवजी, ब्रह्मा जी और विष्णु जी की शक्तियों से एक अत्यंत ही सुंदर स्त्री प्रकट होती है जिन्हें दुर्गा का नाम दिया गया, उनके 18 हाथों में देवताओं द्वारा दिये अस्त्र- शस्त्र सुशोभित हो रहे थे।
ऐसा कहा जाता है कि दुर्गा माँ और महिषासुर के बीच 10 दिनों तक ये युद्ध चला था। महिषासुर तरह तरह के जानवर का रूप लेकर माता पर आक्रमण करता और हार जाता था, अंततः 10वें दिन माता महिषासुर का गला काट कर युद्ध को समाप्त करती है, और इस दुष्ट राक्षस से संसार को मुक्त कराती है।
9 दिनों के इस काल को नवरात्रि कहते है और दसवें दिन माता ने महिषासुर पर विजय प्राप्त की, अतः विजय प्राप्ति के इस दिन को विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है।

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