Devuthni Ekadashi (gyaras)
देवउठनी एकादशी
दोस्तों आज मैं आपको देवउठनी एकादशी का महत्त्व और कथा के बारे में बताने वाली हूँ। वैसे तो एक साल में 24 एकादशी आती हैं, यानी की हर महीने 2 एकादशी। परन्तु इन सभी एकादशियों में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को सबसे महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। देवउठनी एकादशी को देवोत्थान एकादशी, देवउठनी ग्यारस, प्रबोधिनी एकादशी आदि नामों से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है की आज के दिन चार महीनों की निद्रा के पश्चात् श्री हरि विष्णु जागते हैं, इसलिए आज के दिन को देवउठनी ग्यारस कहते हैं।
इस दिन लोग दिवाली की तरह ही घर में दिए जलाते हैं और पूजा पाठ करते हैं, जिससे घर में सुख समृद्धि बनी रहती है।
एकादशी व्रत कथा -
इस कथा के अनुसार, एक शंखासुर नामक दानव बहुत ही बलशाली था और उसने समस्त लोकों में उत्पात मचाया हुआ था। सभी देवी देवता, ऋषि आदि उस दानव से परेशान होकर विष्णु जी के पास आते हैं और उस दानव से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना करते हैं। तब विष्णु जी और उस दानव शंखासुर के बीच कई सालों तक युद्ध चला और युद्ध में दानव की हार हुई और वो मारा गया।
परन्तु इतने लम्बे चले युद्ध के उपरांत भगवान विष्णु बहुत थक जाते हैं और क्षीर सागर में सोने के लिए चले जाते हैं। चार माह सोने के बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन भगवान् विष्णु की नींद खुलती है। और तब इस अवसर पर सभी देवता गण भगवान् विष्णु की पूजा करते हैं। और इसलिए आज का ये दिन देवउठनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है।
इस तिथि के बाद से सारे शुभ काम जैसे शादी, मुंडन और अन्य मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं । आज के दिन ही तुलसी माता का शालिग्राम से विवाह भी कराया जाता है।

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